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हरिहरपुरी के दोहे




हरिहरपुरी के दोहे


प्रेम भाव मानव महा, मूरत परम विशिष्ट।

कोमल चित्त कृपाल नित, अतिशय पावन शिष्ट।।


प्रेम सकल ब्रह्माण्ड का, नायक दिव्य महान।

इस नायक के रूप में, केवल हैं भगवान।।


प्रेमशास्त्र का नित करो, मन-दिल से अभ्यास।

इसे समझने के लिये, करते रहो प्रयास।।


प्रेम वही पर पनपता,जहाँ सत्य-सम्मान।

विषय-भोग यह है नहीं, यह है मूल्य महान।।


यह संस्कृति अति पावनी, यह कृति सात्विक भान।

इसको लेकर संग में, गाते कान्हा गान।।


यह अति शीतल छाँव मधु, मंद-मंद मुस्कान।

राधा का परिधान यह, श्री कृष्णा का ध्यान।।


लिये अंक में राधिका, कान्हा करते नृत्य।

पूजनीय यह प्रेम है, राधे-कान्हा स्तुत्य।।


मंगलकारी प्रेम है,करत अमंगल नाश।

जगती के कल्याण में, करता यही निवास।।


सहज प्रेम के देश में, आदि शक्ति का वास।

यही सृष्टि की आतमा, यह है सबकी श्वांस।।


जहाँ प्रेम का संचरण, वहाँ देव का धाम।

जय जय बोलो प्रेम की, जपो प्रेम का नाम।।


ईश्वर का संदेश यह, सबका सबसे प्रेम।

एक दूसरे का वहन, होये योग-क्षेम।।


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Muskan khan

09-Jan-2023 05:59 PM

Lajavab

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